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26 oct

जिन हाथों से काम चलता है, वो खुद मदद से वंचित रहते हैं।

हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी उन हज़ारों मेहनतकश हाथों पर निर्भर करती है जो अपने कौशल और परिश्रम से हमारे जीवन को सरल बनाते हैं। बिजली खराब हो जाए तो इलेक्ट्रीशियन, नल लीक हो तो प्लंबर, गाड़ी बंद हो जाए तो ड्राइवर या मिस्त्री—हर एक जरूरत के लिए हम इन तकनीकी रूप से दक्ष लोगों पर निर्भर होते हैं।

लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि इनकी ज़िंदगी कैसी होती है? ये लोग जो हमारे लिए हर समय तैयार रहते हैं, वे खुद जब मुश्किल में होते हैं तो उनके लिए कोई तैयार नहीं होता। यही इस ब्लॉग का केंद्रबिंदु है: **"जिन हाथों से काम चलता है, वो खुद मदद से वंचित रहते हैं।"**

देशभर में लाखों लोग तकनीकी कार्यों में लगे हुए हैं। ये लोग नियमित नौकरी में नहीं होते, बल्कि दिहाड़ी मजदूरी या फ्रीलांस आधार पर काम करते हैं। न उनके पास मेडिकल इंश्योरेंस होता है, न कोई पेंशन योजना, और न ही उनकी आमदनी स्थिर होती है। अगर कोई दुर्घटना हो जाए, बीमारी आ जाए या असामयिक मृत्यु हो जाए—तो उनका पूरा परिवार असहाय हो जाता है।

एक सर्वे के अनुसार, भारत में तकनीकी श्रमिकों की संख्या 20 करोड़ से अधिक है, जिसमें ज़्यादातर लोग असंगठित क्षेत्र में आते हैं। इन्हें काम तो हर दिन मिल जाता है, लेकिन सामाजिक सुरक्षा से ये आज भी बहुत दूर हैं। और जब ये अपने जीवन के कठिन मोड़ पर होते हैं, तब उन्हें संभालने वाला कोई नहीं होता।

सोचिए, जो ड्राइवर आपको रोज़ ऑफिस छोड़ता है, यदि वह एक दिन नहीं लौटा तो उसका परिवार कैसे गुज़ारा करेगा? जो मिस्त्री आपकी गाड़ी ठीक करता है, अगर वह बीमार हो गया तो इलाज का खर्च कहां से आएगा? यह सच्चाई है कि वे हमारी समस्याएं तो तुरंत हल कर देते हैं, लेकिन उनकी परेशानियाँ अक्सर अनसुनी रह जाती हैं।

यही वह खालीपन है जिसे भरने के लिए “सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन” जैसा प्रयास ज़रूरी हो गया है। यह संस्था एक ऐसी व्यवस्था लेकर आई है जिसमें कोई भी सदस्य जुड़कर न केवल खुद के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। अगर किसी सदस्य का असामयिक निधन हो जाता है, तो बाकी सदस्य स्वेच्छा से एक छोटी राशि सहयोग करते हैं और संस्था की ओर से तय सहायता निधि मृतक के परिवार को दी जाती है।

यह मॉडल ना केवल आर्थिक मदद प्रदान करता है, बल्कि सामाजिक समर्पण और एकजुटता की भावना को भी सशक्त करता है। जब एक इलेक्ट्रीशियन का बेटा अपनी पढ़ाई पूरी कर पाता है, या किसी ड्राइवर की विधवा को राशन और दवाइयों का सहारा मिल जाता है—तो यह समाज की असली सेवा होती है।

इसके अलावा, सरकार और समाज को भी इस दिशा में कदम उठाने की ज़रूरत है। तकनीकी श्रमिकों के लिए बीमा, स्वास्थ्य योजनाएँ और मृत्यु के बाद परिवार को सहायता देने की ठोस व्यवस्था की जानी चाहिए। स्थानीय निकायों, पंचायतों और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर ऐसे लोगों की सूची बनानी चाहिए और उन्हें प्राथमिकता के आधार पर योजनाओं से जोड़ना चाहिए।

यह भी आवश्यक है कि खुद हम—एक समाज के रूप में—ऐसे लोगों के योगदान को पहचानें। उनके काम की अहमियत को सम्मान दें और जब संभव हो, तो उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए कोई पहल करें। यदि हम एक मिस्त्री के हाथों में केवल औज़ार नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा भी दे सकें, तभी समाज में सच्ची समानता आएगी।

आइए, आज हम यह संकल्प लें कि जो लोग हमारे लिए बिना थके, बिना रुके काम करते हैं, हम उनके लिए भी कुछ करें। सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन से जुड़कर इस मुहिम को आगे बढ़ाएँ, ताकि मेहनत करने वाले हाथों को मेहनत का सच्चा सम्मान मिल सके—सिर्फ काम के समय नहीं, ज़िंदगी के हर मोड़ पर।